Saturday 3 August 2019

छत की सैर - आओ बचपन सींचें ...




आओ बचपन सींचें ...

चाहे कितने भी बड़े हो जाएँ, फिर भी हम सब हमेशा थोड़े-थोड़े बच्चे ही रहते हैं l नए कपड़े पहन कर बड़े भी इतराते हैं l जन्मदिन पर गिफ्ट पाकर बड़े भी खुश हो जाते हैं l 
जरूरी है बच्चा बने रहना और बच्चों से जुड़े रहना l  






प्यारे दोस्तों,

Sunday  का दिन है 

आओ कुछ बातें करें..
कुछ मैं तुम्हे सुनाऊँ 
कुछ तुम मुझे बताओ 
क्यों हमेशा homework 
और assignments  में उलझे रहें,
या Whattsapp , Instagram, Facebook में खोए रहें 
आओ, एक दुसरे के चश्मे से दुनिया देखते हैं 
Sunday की इस सुबह में रंग भरते हैं ....

दोस्तों, ये आपसे जुड़ने का एक प्रयास है, आपको कोई उपदेश या सीख देने की कोशिश नहीं l मैं अपने बचपन की बातें आपके साथ share करूँगा l फिर comment box के जरिये या ईमेल से आप कोई मिलती-जुलती बात मुझे बताना l उनमे से कुछ बातें मैं अगले ब्लॉग में शेयर करूँगा l 
और हाँ, आपके द्वारा भेजे गए Experiences में से किसी एक  entry को prize भी मिलेगा l 
कुछ न भी share करना हो तो आपको हमारी पोस्ट  कैसी लगी   , जरूर बताइयेगा .....






   छत की सैर 





बचपन बड़ा सुहाना था 
जैसे दही-बड़े की चटनी में पड़ा 
मोटा सा अँगूर का दाना था l

घर में पंखा तो था 
पर बिजली अक्सर 
मुँह फुलाए रहती थी 
ना जाने क्यों 
हमें खुश देखकर 
कुड़ जाया करती थी l

हम छत पर सोया करते थे 
कभी माँ से,  कभी पापा से 
कहानियाँ सुन कर 
आसमान में अपने सपनों के 
तारे बोया करते थे 

कभी दादा-दादी,  कभी नाना-नानी 
कभी बुआ, कभी चाचा 
कभी मामा और मौसी 
आते-जाते रहते थे l
नई नई कहानियों के 
मौसम ठहरे रहते थे l

कभी दादाजी का बूढ़ा किस्सा, 
कभी दादी के ठाकुर जी का करतब 
नानाजी कहते थे मुहावरे और कहावतें 
नानी समझाया करती थीं उनका मतलब 
बुआ की अटपटी होती थीं पहेलियाँ 
खुजा-खुजा  बाल नोच डालते थे  हम सब l

चाचा पहले तो तुक वाले शब्दों की 
कराते थे कलाबाजियाँ 
फिर उनके  साथ मिलकर 
हम झटपट पिरो देते थे काफिया l

मामा जब भी आते थे 
पुरानी दिल्ली की चाट लाते थे 
और एक रुमाल की पोटली में 
भूतों के कारनामे वाले 
मुसे-सिकुड़े अखबार भी आते थे 
हम दिन में हेकड़ी से पढ़ते थे 
रात को भीगी बिल्ली बन जाते थे l
दीवारों पर परछाई देख 
छोटी पिपलु चीख पड़ती थी 
पापा की डाँट के डर से 
मामा चादर में छुप जाते थे l

वो रात  दादा -दादी वाली थी 
नई कहानियाँ आने वाली थीं 
तीन गद्दे सटाकर बिछाये थे 
चाँद को सिरहाने के पीछे 
छोड़ आए थे 

मैं,  दादा,  बीच में सुपलु और पिपलु 
फिर दादी और फिर बब्लु 
"दादू,  अगर हम अपनी गुड़िया ले आएँगे 
तो हम भी सप्तऋषि (Great Bear or Ursa Major) बन जाएँगे l"

"हाँ,  जाओ,  झटपट ले आओ 
अपना भी सप्तऋषि बनाओ l"

"देखो वहाँ, 
आसमान में 
शायद सप्तऋषि की शादी है 
देखो बिच्छू (Scorpio Constellation) की पूँछ भी आधी है 
चाँद भी देखो,  सजा-धजा है 
इसे भी दावत का चस्का लगा है l
ध्रुव तारा,  खूंटे से बंधा बेचारा 
देखो,  हँसता हुआ लगे कितना प्यारा l

दादाजी दादी को मास्टरजी बुलाते थे 
क्यों,  कभी ना किसी को बताते थे 

"मास्टरजी, 
हवा शायद नाराज़ है 
या उसकी तबियत नासाज़ है 
कितनी देर हुई 
चल ही नहीं रही है 
बीजना ले आओ,  गर्मी बड़ी है l"

दादी ने तकिये पर कोहनी टिकाई 
सिर ऊँचा कर उसके नीचे हथेली लगाई 

"सात कानों (One-eyed person) के नाम लो 
देखना,  हवा चल जाएगी"
दादी ने तरकीब सुझाई 

"कैसी बात करती हो, मास्टरजी 
सात कानों के नाम बच्चे कहाँ ढूँढ पाएँगे 
इस काम में तो घंटों लग जाएँगे"

"बच्चों,  दादाजी चुनौती दे रहें हैँ 
तुम सबको हल्के में ले रहें हैँ 
चलो,  पहला नाम मैं कहती हूँ 
'कौए' से शुरुआत करती हूँ "

दादी से तब पोती बोली 
पिपलु की जिज्ञासा डोली 
"कौआ क्या काना होता है? 
वो तो बस,  काला होता है l"

"बतलाऊँगी,  बतलाऊँगी कहानी वो भी 
हवा तो चल जाने दो l
गिनती को आगे बढ़ाओ 
और कानों के नाम बताओ"

"नुक्कड़ वाले श्रीनिवास अंकल "
 "अरे ! शकुनि भी तो काना था"
"स्कूल वाली माई जी भी हैँ "
"चार हुए,  तीन अभी भी बाकी हैँ "

बहुत दिमाग दौड़ाया हमने 
और काने ना मिले 
एक-एक करके सो गए सारे 
हवा चले,  ना चले l

बड़े हो गए तब ये समझा 
वो तो तरकीब थी दादी की 
सोयी हवा से ध्यान हटे हमारा 
इसलिए कानों की गिनती करा दी थी l


दोस्तों,  
तुम भी कभी-कभी 
रात को छत पर जाया करो 
हो सके तो किसी बड़े को 
साथ अपने ले जाया करो l
Gibbous और Crescent moon से 
किताबों में ही क्यों मिलते हो 
Ursa Major और Minor, 
Orion और Scorpio भी 
तुम्हारा इंतज़ार करते हैँ 
कभी-कभी जाकर इन्हें 
Hello बोल आया करो l
ताजी हवा बड़े काम की 
काले आसमान में सुनहरे तारों की 
कसीदाकारी बड़े नाम की 
रोज Exhibition लगती है 
तुम भी देख आया करो l
दोस्तों,  
तुम भी कभी-कभी 

रात को छत पर जाया करो 

























ये शुरुआत मैंने Friendship Day से आप सब के साथ लम्बी दोस्ती के लिए की हैl 
अपने सुझाव,  प्रतिक्रिया-अच्छी या बुरी, मुझ तक पहुँचाते रहिएगा l


28 comments:

  1. बहुत सुंदर...सब कुछ ताज़ा कर दिया...पर हमारी उम्र के लिए...आज के बचपन ने तो ये सब देखा ही नही तो पता नही महसूस भी करेंगे या सिर्फ एक किस्सा होगा उनके लिए ...इतना बदलाव क्या वाकई जरूरी था?

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    1. बहुत आभार, मुकुल जी.
      आपका कहना सही हैँ. बच्चों ऐसे अद्भुत अनुभव से अछूते होंगे. इसलिए अंतिम अनुच्छेद में मैंने उन्हें छत पर जाने की सलाह दी है और किसी बड़े को साथ ले जाने के लिए भी कहा है. आप जैसे मित्रों के माध्यम से यह post बच्चों तक पहुँच जाए, ऐसी कामना है. आप share करेंगें तो कृपा होगी.

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  2. After reading this my nostalgia hitted me hard😊😊 Because we all have such kinds of memories with our grandparents..

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    1. Dear friend, yes, we all have such stories. And, you can share one of those here or email me.
      Also, please mention your good name. 🙂

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  3. Really feel sorry for our children who can't experience the golden times like ours. You have made our memories green Gaurav through your thoughts put into to apt wordings.

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    1. Thanks, Rajeev for your kind words. It is just an effort to nurture the real childhood our kids are deprived of.

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  4. Bahut sunder.
    Apna bachpan yaad aa gaya

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  5. Very good Gaurav. This attempt on your part will definitely bring about change in some youngsters. And then a chain reaction is also possible. Keep it up.

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    1. Humble thanks to you, sir for reading and appreciating it.
      I too hope, it attains the intended objective. 🙏

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  6. Very nice .....

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  7. Replies
    1. mein aaj hi apne grandparents ke saath chat pr jaake unke kissey sunungi or sir aapke saare morals hmari aane vali life m bhot kaam ayenge thanku so much sir abhi Hume jitna gyan mile utna humare liye acha hain 😊😊

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    2. Thanks for such overwhelming feedback.

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  8. This comment has been removed by the author.

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  9. Thanks you so much for giving us such a wonderful poem which causes us to feel contentment . I too love to observe stars, but can hardly spot any in our city.I remember my parents talking about their childhood experiences. Would'that I could live like them.At last I would like to say thanks and please keep sharing your experiences with us

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  10. Bhot hard sir bhut aacha LGA ye pd ke
    Swapnil ⚡

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  12. वाह बचपन की यादें.. शानदार

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