हिन्दी कविताएँ


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श्रीकृष्ण चले परिक्रमा कू

राधे राधे  श्रीकृष्ण चले परिक्रमा कू संध्या दुपहरी के द्वार खटखटा रही थी। बृज की रज आकाश को अपनी आभा में डुबो कर केसरिया करने को आतुर हो चली...