आओ बचपन सींचें ...
चाहे कितने भी बड़े हो जाएँ, फिर भी हम सब हमेशा थोड़े-थोड़े बच्चे ही रहते हैं l नए कपड़े पहन कर बड़े भी इतराते हैं l जन्मदिन पर गिफ्ट पाकर बड़े भी खुश हो जाते हैं l
जरूरी है बच्चा बने रहना और बच्चों से जुड़े रहना l
प्यारे दोस्तों,
Sunday का दिन है
आओ कुछ बातें करें..
कुछ मैं तुम्हे सुनाऊँ
कुछ तुम मुझे बताओ
क्यों हमेशा homework
और assignments में उलझे रहें,
या Whattsapp , Instagram, Facebook में खोए रहें
आओ, एक दुसरे के चश्मे से दुनिया देखते हैं
Sunday की इस सुबह में रंग भरते हैं ....
दोस्तों, ये आपसे जुड़ने का एक प्रयास है, आपको कोई उपदेश या सीख देने की कोशिश नहीं l मैं अपने बचपन की बातें आपके साथ share करूँगा l फिर comment box के जरिये या ईमेल से आप कोई मिलती-जुलती बात मुझे बताना l उनमे से कुछ बातें मैं अगले ब्लॉग में शेयर करूँगा l
और हाँ, आपके द्वारा भेजे गए Experiences में से किसी एक entry को prize भी मिलेगा l
कुछ न भी share करना हो तो आपको हमारी पोस्ट कैसी लगी , जरूर बताइयेगा .....
छत की सैर
बचपन बड़ा सुहाना था
जैसे दही-बड़े की चटनी में पड़ा
मोटा सा अँगूर का दाना था l
घर में पंखा तो था
पर बिजली अक्सर
मुँह फुलाए रहती थी
ना जाने क्यों
हमें खुश देखकर
कुड़ जाया करती थी l
हम छत पर सोया करते थे
कभी माँ से, कभी पापा से
कहानियाँ सुन कर
आसमान में अपने सपनों के
तारे बोया करते थे
कभी दादा-दादी, कभी नाना-नानी
कभी बुआ, कभी चाचा
कभी मामा और मौसी
आते-जाते रहते थे l
नई नई कहानियों के
मौसम ठहरे रहते थे l
कभी दादाजी का बूढ़ा किस्सा,
कभी दादी के ठाकुर जी का करतब
नानाजी कहते थे मुहावरे और कहावतें
नानी समझाया करती थीं उनका मतलब
बुआ की अटपटी होती थीं पहेलियाँ
खुजा-खुजा बाल नोच डालते थे हम सब l
चाचा पहले तो तुक वाले शब्दों की
कराते थे कलाबाजियाँ
फिर उनके साथ मिलकर
हम झटपट पिरो देते थे काफिया l
मामा जब भी आते थे
पुरानी दिल्ली की चाट लाते थे
और एक रुमाल की पोटली में
भूतों के कारनामे वाले
मुसे-सिकुड़े अखबार भी आते थे
हम दिन में हेकड़ी से पढ़ते थे
रात को भीगी बिल्ली बन जाते थे l
दीवारों पर परछाई देख
छोटी पिपलु चीख पड़ती थी
पापा की डाँट के डर से
मामा चादर में छुप जाते थे l
वो रात दादा -दादी वाली थी
नई कहानियाँ आने वाली थीं
तीन गद्दे सटाकर बिछाये थे
चाँद को सिरहाने के पीछे
छोड़ आए थे
मैं, दादा, बीच में सुपलु और पिपलु
फिर दादी और फिर बब्लु
"दादू, अगर हम अपनी गुड़िया ले आएँगे
तो हम भी सप्तऋषि (Great Bear or Ursa Major) बन जाएँगे l"
"हाँ, जाओ, झटपट ले आओ
अपना भी सप्तऋषि बनाओ l"
"देखो वहाँ,
आसमान में
शायद सप्तऋषि की शादी है
देखो बिच्छू (Scorpio Constellation) की पूँछ भी आधी है
चाँद भी देखो, सजा-धजा है
इसे भी दावत का चस्का लगा है l
ध्रुव तारा, खूंटे से बंधा बेचारा
देखो, हँसता हुआ लगे कितना प्यारा l
दादाजी दादी को मास्टरजी बुलाते थे
क्यों, कभी ना किसी को बताते थे
"मास्टरजी,
हवा शायद नाराज़ है
या उसकी तबियत नासाज़ है
कितनी देर हुई
चल ही नहीं रही है
बीजना ले आओ, गर्मी बड़ी है l"
दादी ने तकिये पर कोहनी टिकाई
सिर ऊँचा कर उसके नीचे हथेली लगाई
"सात कानों (One-eyed person) के नाम लो
देखना, हवा चल जाएगी"
दादी ने तरकीब सुझाई
"कैसी बात करती हो, मास्टरजी
सात कानों के नाम बच्चे कहाँ ढूँढ पाएँगे
इस काम में तो घंटों लग जाएँगे"
"बच्चों, दादाजी चुनौती दे रहें हैँ
तुम सबको हल्के में ले रहें हैँ
चलो, पहला नाम मैं कहती हूँ
'कौए' से शुरुआत करती हूँ "
दादी से तब पोती बोली
पिपलु की जिज्ञासा डोली
"कौआ क्या काना होता है?
वो तो बस, काला होता है l"
"बतलाऊँगी, बतलाऊँगी कहानी वो भी
हवा तो चल जाने दो l
गिनती को आगे बढ़ाओ
और कानों के नाम बताओ"
"नुक्कड़ वाले श्रीनिवास अंकल "
"अरे ! शकुनि भी तो काना था"
"स्कूल वाली माई जी भी हैँ "
"चार हुए, तीन अभी भी बाकी हैँ "
बहुत दिमाग दौड़ाया हमने
और काने ना मिले
एक-एक करके सो गए सारे
हवा चले, ना चले l
बड़े हो गए तब ये समझा
वो तो तरकीब थी दादी की
सोयी हवा से ध्यान हटे हमारा
इसलिए कानों की गिनती करा दी थी l
दोस्तों,
तुम भी कभी-कभी
रात को छत पर जाया करो
हो सके तो किसी बड़े को
साथ अपने ले जाया करो l
Gibbous और Crescent moon से
किताबों में ही क्यों मिलते हो
Ursa Major और Minor,
Orion और Scorpio भी
तुम्हारा इंतज़ार करते हैँ
कभी-कभी जाकर इन्हें
Hello बोल आया करो l
ताजी हवा बड़े काम की
काले आसमान में सुनहरे तारों की
कसीदाकारी बड़े नाम की
रोज Exhibition लगती है
तुम भी देख आया करो l
दोस्तों,
तुम भी कभी-कभी
रात को छत पर जाया करो
ये शुरुआत मैंने Friendship Day से आप सब के साथ लम्बी दोस्ती के लिए की हैl
अपने सुझाव, प्रतिक्रिया-अच्छी या बुरी, मुझ तक पहुँचाते रहिएगा l