Tuesday, 20 May 2014


 एक सपना ......


ऐ सपने सच होना होगा तुझको,
आंसुओं से सींचा है तुझको,
नौ मॉस नहीं नौ बरस नहीं,
युगों युगों पाला है तुझको,
पूजा परमात्मा सी की है,
मेरा पूर्ण समर्पण तुझको,
मन के गर्भ में सोया है तू,
जाग रहा हूँ मै न जाने कबसे,
आँखों में बसाये तुझको|
सावन की गीली आग लकड़ियों सा,
शरद की सूखी पत्तियों सा,
मर रहा हूँ जीने को तुझको,
पिघला विषाद पी रहा हूँ,
आकृति में पा लूँ तुझको,
सपने सच होना होगा तुझको|

No comments:

Post a Comment

Thanks for your invaluable perception.

श्रीकृष्ण चले परिक्रमा कू

राधे राधे  श्रीकृष्ण चले परिक्रमा कू संध्या दुपहरी के द्वार खटखटा रही थी। बृज की रज आकाश को अपनी आभा में डुबो कर केसरिया करने को आतुर हो चली...