यादों की पोटली से
यादों के शहर में,
ऊंची नीची लहराती,
एक संकरी सी सड़क है
इतराती हवा से महका,
हवाईजहाजों को खिलौनों सा लटकाये
चिट्टा आसमानी फलक है |
झुरमुटि दरख्तों से छुप छुप कर धूप झांकती है ,
ऊंची डाल पर कोयल, न जाने क्या बाँचती है
लपकता है कुछ पकड़ने को मोर कहीं से,
उस पार गुमसुम मकानों की कतार भागती है |
हर बीस कदम पर कुछ मोड़ शरमाकर मुड़ जाते हैं,
और पलाश के बिखरे फूल ओढ़ कर सिमट जाते हैं,
तभी आती है दूर से मेरे तुम्हारे क़दमों की आहट,
हमारे खामोश शब्द भी कानों में चिंघाड़ सा जाते हैं |
सड़क की लहरें पर तैरते, कदम से कदम मिलाये,
हम कनखियों से एक दूजे को परखते चलते जाते हैं ,
मानो जो सोच कर आये थे कहने को, याद करते हों,
या शायद अपनी हिचकिचाहटों से लड़ते जाते हों |
हज़ार कुछ सौ कदमों को हमसफ़र बने थे हम,
पचास कुछ कदमों के बाद तुम कूकी थीं,
सत्तर कुछ कदमों पर मैं चहका था |
पर उस संकरी सी सड़क से
मैं जब कभी भी मिलता हूँ '
वो चमन उत्नस ही महकता है,
जितना उस मुलाकात पर महका था |
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Thanks for your invaluable perception.