Thursday 31 July 2014

ऐ खुदा ... रस्में नयी बनाना ...
 
ऐ खुदा ,कोई और जहाँ कभी बनाओ तो रस्में नयी बनाना ,
फिर दुबारा, ताकत को नशा, मजबूरी को गुनाह मत बनाना |

कोई किसी हंसी की वजह बना, इसका पता चले न चले,
पर कितने आंसू उसके कारण बहे, इसका हिसाब ज़रूर बताना |

काँटों पर चलकर मंज़िल पाये, तो ख़ुशी दोगुनी हो जाये,
पर फूल रोंद कर बढ़े कोई, तो उसे एहसास ज़रूर कराना |

झूठन छोड़ने का शौक अमीर को कराओ, करा देना बेशक ,
मासूमों को रूखी रोटी खिलाओ, पर भूखा मत सुलाना |

किसी को मुस्काता देख, दूसरे भी मुस्काएं, ज़रूरी न भी हो,
पर किसी के दर्द को, किसी की दवा हरगिज़ नहीं बनाना |

मोहब्बत दिल में उपजे और दिल तक ही सिमटी रहे बस,
ज़हर-ऐ-हवस मिलाकर, मोहब्बत को नापाक मत बनाना |

दर्ज़ा अपना बक्शना न चाहो, औरत को, कोई शिकवा नहीं,
बहन बेटी को किसी की अय्याशी का सामान मत बनाना |

बचपन की भूख तालीम गिरवी रखकर, बारूद न खरीदा जाये,
सरहदों को लहू से सींचने का चलन , आगे और न चलाना |

इंसानियत ही ढूंढे इंसान, उसे खुदाई ढूंढने का जूनून न हो,
ऐ खुद, अबकी बार अपने नाम को मज़हबी जामा न पहनाना |

गम हो तो हर आँख भीगे, ख़ुशी महके तो हर आँगन महकाए,
ईद-दिवाली सालाना क्यों, इंसानियत का त्यौहार हर रोज़ मनवाना |

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