Saturday, 18 January 2014

सोचना कि क्या हुआ

सोचना कि क्या हुआ


इन गुलाबों पर ये ओस की बूंदे युगों से लटकी हैं
मेरे आँगन में चिड़ियाएँ खामोश दाना चुगती हैं
सिसकती हवाओं से रोते आसमान से पूछना कि क्या हुआ?
सोते सोते चोंक कर उठ जाओ तो सोचना कि क्या हुआ?
आँखें रात रात भर सपनो का बाज़ार लगाती हैं
आंसुओं की बूंदे हर मुस्कराहट का साथ निभाती हैं ....
हँसते हुए कभी तुम्हारे भी आंसू आ जाएँ तो पूछना कि क्या हुआ ...?
किसी चहरे में मेरी शक्ल नज़र आये तो सोचना कि क्या हुआ?

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