Saturday, 20 December 2014



सपने और ख्याल 

सपने, शर्मीले, झेंपू हो?
क्या हो ?
रात को दबे पाँव आते हो,
नाजायज़ हो क्या?
हो तो मत आया करो...
मैं ख्यालों का मुरीद हूँ,
बेधड़क आते हैं,
कभी भी कहीं भी,
सच के आस पास ही होते हैं,
तुम्हारी तरह नहीं,
कुछ भी बताया, दिखाया
और चल दिए |
आना हो तो
खुली आँख हो
तब आया करो,
मैं परवाह करूँगा तुम्हारी |
गौरव शर्मा

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