यूँ ही मत जी
ज़िन्दगी तेरी लौ के
ढंग भी निराले हैं,
कितनी भी आँधियाँ आएं,
बुझती ही नहीं तू...
बस लड़खड़ा के रह जाती है...
या तो हवा की फूँक में दम कम है,
या तेरी ज़िंदा रहने की भूख है ज्यादा...
चल अब जी ही रही है तो,
रोशनी भी बिखेर कुछ....
No comments:
Post a Comment
Thanks for your invaluable perception.