रिश्ते कैसे कैसे ....
एक रिश्ता ऐसा भी होता है जैसा,
हवा और उड़ते कागज़ का...
जब जितना हवा का प्यार उमड़ता है,
कागज़ ऊपर ऊपर उड़ता है....
जब हवा मुंह मोड़ लेती है,
कागज़ हौले हौले गिरता है |
कुछ रिश्ते ऐसे ही चलते हैं,
मन हुआ तो निभा लिया,
मन ऊब गया तो मिटा दिया |
एक और रिश्ता होता है,
पानी और उस पर तैरते पत्ते का,
हर हिलोर पर ख्याल झलकता है,
टूटा पत्ता भी कितना बेफिक्र लगता है,
कभी जब बहुत प्यार आता है तब
पानी पत्ते के ऊपर से भी गुजरता है...
उसे पूरा भिगो देता है,
पर डुबोता नहीं....
चिड़ा भी बनाता है,
शीशे में अपनी परछाई
संग एक रिश्ता,
कभी गाल से गाल
सटाटा है,
कभी चोंच से चोंच
भिड़ाता है...
कितनी मनुहार करता है...
पर जितना देता है
उतना ही पाता है...
ज्यादा नहीं पर कुछ
अलग तो मिले...
दूसरी तरफ से भी
चाहत का पता तो चले...
चिड़ा हार कर लड़ पड़ता है...
जितना दो उतना ही मिलेगा...
रिश्ता क्या व्यापार होता है ?
एक रिश्ता और भी है...
जिसमे सूरज और धरती,
युगों से बंधे हैं....
कभी तोड़ने की
छूटने की बात नहीं करते....
न कभी पास आते हैं,
न कभी एक दूजे को छूते हैं....
दूर दूर हैं,
पर रिश्ता मजबूत है...
सूरज देता है,
कभी एहसान नहीं जताता...
धरती लेती है...
कम ज्यादा शिकायत
का झगड़ा नहीं होता...
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Thanks for your invaluable perception.