आओ बचपन सींचें -२
चाहे कितने भी बड़े हो जाएँ, फिर भी हम सब हमेशा थोड़े-थोड़े बच्चे ही रहते हैं l नए कपड़े पहन कर बड़े भी इतराते हैं l जन्मदिन पर गिफ्ट पाकर बड़े भी खुश हो जाते हैं l
जरूरी है बच्चा बने रहना और बच्चों से जुड़े रहना l
जरूरी है बच्चा बने रहना और बच्चों से जुड़े रहना l
जीवन के लिए 'एनर्जी- ड्रिंक' जैसे होते हैं त्यौहार
दोस्तों,
अगला सप्ताह खुशियों का सप्ताह है चार दिन में तीन बड़े त्यौहार हैं l प्रत्येक त्यौहार के कुछ दिन पहले से ही हमारे मन में जो ख़ुशी, उमंग और उत्साह होता है ना, शायद वो काफी है ये समझने के लिए कि त्यौहार हमारे जीवन में कितना महत्व रखते हैं l त्योहारों के बिना जीवन कितना नीरस और उबाऊ होगा , कल्पना करके देखिये l समय समय पर आते त्यौहार हमें उमंग और उल्लास से भर देते हैं l
१२ अगस्त को बकरीद है इसे ईद-उल-अज़हा या ईद- उल-जुहा भी कहते हैं l
बकरीद मीठी ईद के दो महीने बाद मनाई जाती है ये क़ुरबानी का त्यौहार है l
हज़रत इब्राहिम ने अपना पूरा जीवन परोपकार के लिए समर्पित कर दिया पर उनके कोई संतान न थीl तब 90 वर्ष की आयु में खुदा ने उनको एक पुत्र बक्शा और सपने में आकर उनसे उनके प्रिय जानवर की क़ुरबानी माँगी l उन्होंने सबसे पहले ऊँट की क़ुरबानी दी लेकिन सपना दोबारा आया l
हज़रत इब्राहिम अपने प्रिय जानवरों की क़ुरबानी देते रहे पर सपने आने बंद ना हुए l
अंत में उन्होंने अपने पुत्र की क़ुरबानी देने का फैसला किया l आँख पर पट्टी बाँधकर उन्होंने अपने पुत्र की क़ुरबानी दे डाली लेकिन जब पट्टी खोली तो पुत्र को खेलता पाया l उनके पुत्र की क़ुरबानी बकरे की क़ुरबानी में बदल चुकी थी l
ईद-उल-जुहा का त्यौहार हज़रत इब्राहिम के जज़्बे को सलाम करने का त्यौहार है l बकरे की क़ुरबानी के बाद उसके माँस को तीन भागों में बाँटा जाता है - एक भाग गरीबों के लिए, दूसरा रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए और तीसरा अपने लिए रखा जाता है l
बचपन में मेरा एक दोस्त था -आज़ाद शेख ईद पर हम उसके घर होते थे और राखी पर वो हमारे घर l हम शाकाहारी हैं इसलिए सेवँईया मिलती थी हमें - दूध में पकी सूखी सेवँईया जिसमे खूब सारे काजू-बादाम-किशमिश डले होते थे, बड़ी स्वाद होती थीं l
कुछ सालों बाद एक दोस्त मिला - रोशन मुशीर l उसके घर जाता था तो बहुत प्यार मिलता था l मीठी ईद पर उसकी अम्मी पाँच तरह की सेवँईया बनाती थीं - पाँचों एक से बढ़कर एक l
आज़ाद और मुशीर दोनों के घरों में मुझे ईद पर ईदी मिलती थी और वो सेवँईया इतनी स्वाद होती थीं कि हम भी ईद का इंतज़ार किया करते थे साथ-साथ त्यौहार मनाने का आनंद ही कुछ और है l
चार दिन बाद बड़ा शुभ दिन है l भावनाओं के दो बड़े त्यौहार एक ही दिन हैं l
आप भी मेरी तरह इन त्योहारों के लिए उत्साहित होंगें l आने वाले दोनों त्यौहार तो सबके प्रिय त्यौहार होते हैं l
स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन भावनाओँ को ओत-प्रोत करने वाले त्यौहार हैं l एक देश के प्रति देशवासियों के प्रेम को दर्शाता है तो दूसरा भाई-बहन के पावन रिश्ते को और भी प्रगाढ़ कर जाता है l
मेरे पिताजी वायुसेना में कार्यरत थे और देशप्रेमी थे l पंद्रह अगस्त कि छुट्टी हमारे लिए और छुट्टियों से अलग होती थी l लाल किले पर ध्वजारोहण और प्रधानमंत्री के अभिभाषण का सीधा प्रसारण देखना हमारे लिए अनिवार्य था l पिताजी रोज की तरह उस दिन भी सुबह पाँच बजे उठते थे और हम सभी भाई-बहनों को भी उठा देते थे l सीधा प्रसारण शुरू होने से पहले सबको स्नान कर लेना भी अनिवार्य था l पिताजी उस दिन विशेषतः सफ़ेद कुर्ता-पजामा पहनते थे l
सभी के तैयार हो जाने पर हमारा लकड़ी के कैबिनेट में शटरबंद Black & White टीवी चालू किया जाता था l पिताजी बड़े संयम से हमारे सारे प्रश्नों के उत्तर देते थे l राष्ट्रीय गान के समय पिताजी खड़े हो जाते थे और हमें भी खड़े होने के लिए कहते थे l
लाल किले पर समारोह समाप्त होने के बाद पतंग उड़ाने का कार्यक्रम प्रारम्भ होता था l पंद्रह अगस्त पर हर बार नई चरखड़ी आती थी और रंग-बिरंगी ढेर सारी पतंगें भी l पिताजी पतंग उड़ाते थे और मैं चरखड़ी पकड़ता था l मुझे पतंग उड़ाना कभी नहीं आया l आज भी नहीं आता l बचपन में मुझे क्रिकेट का ही भूत सवार रहता था लेकिन पतंग उड़ाते समय एक बड़ा ही बढ़िया काम स्वतः ही हो जाता है - आसमान की ओर निहारना l पतंग उड़ाने के अतिरिक्त ऐसा कब करते हैं हम ?
शायद ही कभी करते हों l
दोस्तों, आसमान की तरफ कुछ देर देखना l आसमानी मैदान पर सफ़ेद चिट्टे बादल कितनी स्वच्छंदता से उड़ते हैं -जैसे बस उन्हें उनका लक्ष्य दिखाई दे रहा हो और वो उस तक पहुँचने के लिए लालायित हों l उनकी आकृति को पढ़ना भी काफी आनंददायक होता है l बादल अगर काले हों तो देखना, आप उन्हें ज्यादा तेजी से भागते पाओगे l शायद किसी को राहत देने जा रहे होते हैं इसलिए l
ऐसी पृष्ठभूमि पर उनसे भी अधिक स्वच्छंदता से उड़ती आपकी रंग-बिरंगी पतंगें आसमान में भी त्यौहार की सी रौनक बना देती हैं मानो बादलों के घर उनकी बहनें आईं हों राखी बाँधने l
कहीं इसी कारण से तो हम रक्षाबंधन वाले दिन भी पतंगें नहीं उड़ाते ?
अगर आसमान साफ़ ना हो तो दूर से झाँकती गहरे रंग की घटायें, सूरज को ढक कर राहत देने की कोशिश करतीं हैं l हाँ, कभी-कभी बरस जातीं हैं पर बरसना उनकी मजबूरी होता है ना ?
आसमान के विस्तार को देखने से हमारे अंदर विनम्रता भी आती है l आप भी देखना और बताना कैसा लगा l
और आसमान में ऊँचे उड़ते पक्षी जहाँ एक ओर ऊँची उड़ान भरने का हौंसला और प्रेरणा दे रहे होते हैं, वहीँ अनुशासन की सीख भी दे रहे होते हैं l
आसमान अपने आप में किसी पुस्तक से काम नहीं हैं l पिछली बार हमने रात के आसमान की बात की थी पर दिन का आसमान भी कम निराला नहीं होता l
पतंगे उड़ाया करो , दोस्तों पर पूरी सावधानी के साथ l पतंग उड़ाने की जगह सुरक्षित होनी चाहिए अगर छत पर उड़ा रहे हो तो वहा मुंडेर होनी जरूरी है l
पतंगें अपनी डोर के अधीन नहीं होतीं ... ना ही उस पर आश्रित होतीं हैं l डोर पतंग को आसमान तक ले जाती है और फिर स्वच्छंदता से गोते खाने देती है, विचरने देती है और आसमान छूने देती है l डोर स्वयं आसमान नहीं छू पाती l हमारे माता-पिता और शिक्षक भी तो ऐसी ही डोर होते हैं ना ?
पतंगे उड़ानी चाहिए पर लूटनी नहीं चाहिए l
चलिए, अब रक्षाबंधन की बात करते हैं l
आप सभी अपनी बहनों और भाइयों से लड़ते होंगें l स्वाभाविक है l लेकिन जब कोई और आपकी बहन या भाई के बारे में कुछ दे तो आप को ही सबसे अधिक बुरा भी लगता होगा l यही तो है इस अनूठे रिश्ते की खासियत l
बड़ा प्यारा होता है ये रिश्ता l
कितनी ही बार बहन भाई को मम्मी-पापा की डाँट से बचाती है ल मुझे तो बचपन में ना जाने कितनी बार मेरी बहनों ने मुझे बचाया है l
रक्षाबंधन निश्छल और पवित्र भावनाओं का त्यौहार है lचावल के दानो से सजा रोली का टीका माथे पर लगवाकर और बहन द्वारा कड़े परिश्रम और बहुत चाव से छाँटी हुई प्यारी सी राखी बँधवाकर हर भाई स्वयं को कितना सौभाग्यशाली समझता है l रेशम या सूत का धागा जब भाई की कलाई पर बंध जाता है तो बहन का विश्वास और स्नेह उसे कई गुना मजबूत बना देता है l एक कोमल सा धागा जब भाई की कलाई पर सज जाता है तो वह कोमल नहीं रहता। बहनें धागे में गूँथकर अपार स्नेह व भावनाएँ बाँधती है। कुछ दिन बाद, भाई जब उस धागे को उतारता है तो तोड़ता नहीं, बड़ा जतन लगा के खोलता है और उसे संभाल कर रखता है।
इस बार जब आपकी बहन आपकी कलाई पर राखी बाँध रही हो तो उसकी आँखों में देखना l
आपको स्नेह और विश्वास की अनोखी चमक दिखेगी जो शायद और दिन उतनी ना दमकती हो l
राखी बंधवाते हुए आपके अंदर भी प्रेम उमड़ आता होगा और बहन की सदा रक्षा करने का संकल्प और अधिक प्रबल हो जाता होगा l
दोस्तों, शायद हमारे भारत में ही रिश्तों के त्यौहार मनाये जाते हैं l ऐसे सारे त्योहारों के पीछे कितनी सुन्दर और सच्ची भावनाएँ होतीं हैं आप सभी ने की होंगीं l
अभी दो दिन पहले मैं पोस्ट-ऑफिस में किसी काम से गया था बहुत से लोग राखियों के लिफ़ाफ़े स्पीड-पोस्ट से भेजने के लिए खड़े थे l एक युवती लाइन से निकलकर काउंटर पर आई और पूछा , " लिफ़ाफ़े में राखी के साथ चॉकलेट रख सकते हैं ना ?" उनकी आँखों में चमक थी और आवाज़ में उत्साह l
काउंटर पर बैठीं पोस्ट-ऑफिस अधिकारी ने रूखे लहज़े में उत्तर दिया, " क्या फायदा होगा? पिघल जाएगी l"
युवती मायूस होकर अपने स्थान पर लौट गई l मन हुआ आगे बढ़कर उस युवती से कहूँ, "रख दीजिये l आपने पुछा ही क्यों ?" तभी यही बात लाइन में उस युवती के पीछे खड़ी महिला ने उससे कह दी l मुझे आश्चर्य भी हुआ कि एक स्त्री होते हुए भी पोस्ट- ऑफिस अधिकारी उस युवती की भावनाओं को समझ ना पाई l
चॉकलेट लिफ़ाफ़े में डालते समय युवती की आँखों में चमक लौट आई थी l ऐसा लग रहा था जैसे वो भाई को अपने हाथों से चॉकलेट खिलाने की कल्पना कर रही हो l
बचपन की रक्षाबंधन बड़ी यादगार होतीं थीं l
रक्षाबंधन पर स्कूल की छुट्टी तो होती ही थी। मम्मी पता नहीं कब की उठी होतीं थी। झाड़ू- पोंछा हो चुका होता था जब वो हमें उठाने के लिए झिंझोड़ती थी। भगवान के आले के दोनों ओर व सारे दरवाजों पर खड़िया से चकोर पुता होता था। मैं उठते ही गीली खड़िया पर उंगली लगाता था तो मम्मी हल्की-सी चपत लगा कर कहती थी, "पूजा होगी। झूठे हाथ लगाता है।"
नहाने के बाद सोहन पूजे जाते थे। हमारे यहाँ यह पूजा पुरुष ही करते हैं । कटोरी में गेरू घुला होता था व माचिस की तिली पर रुई लिपटी होती थी। पिताजी सफेद चकोर पर "श्री कृष्ण शरणम् मम:" लिखते थे। गुंधे आटे की बत्तियों से कलावे का हार लगाते थे और रोली के छींटे मार कर भोग लगाते थे। मैं पूजा की थाली पकड़े ध्यान से सब देखता था।
उस समय मम्मी रसोई में कड़ी-चावल बना रही होती थीं। लम्बे श्रावण मास के बाद कड़ी की अटक खुलती है रक्षाबंधन वाले दिन।
फिर मेरी तीनों बहनें मुझे राखी बाँधती थीं, मीठाई खिलाती थीं और आरती उतारती थीं। फिर मैं पापा के दिए हुए पैसे उन्हें देता था। मैं शैतान था पर उस दिन बड़ा ही संवेदनशील और भावुक हो जाया करता था।
इस त्यौहार की सबसे अच्छी बात है घर में लगने वाला जमावड़ा। बुआओं का आना l फिर मम्मी का मामाओं के घर जाना। मूल्य बताकर नहीं सिखाए जाते, निभाकर सिखाए जाते हैं।
समय बदल गया है l आज भाइयों द्वारा बहन की रक्षा का प्रण लेने से अधिक आवश्यक है कि भाई, बहन को अपनी रक्षा स्वयं करना भी सिखाये l साथ ही साथ उसे स्वावलंबी और मानसिक रूप से मजबूत बनने में उसकी सहायता करे, उसे बराबर का दर्जा दे , उसे और उसके विचारों को समझे और उसका सम्मान करे l
प्रत्येक त्यौहार उमंग और उत्साह के साथ मनाएँ और ख़ुशी दूसरों के साथ भी बाँटे l
देश से प्यार करें l देशवासियों का सम्मान करें l खुद से प्यार करें l अपने रिश्तों को सहेज कर रखें l खुश रहे और दूसरों को खुश रखें l
आप सभी को खुशियों भरे आगामी सप्ताह के सभी त्योहरों की हार्दिक शुभकामनाएँ l
आपने ईद, स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन के त्यौहार कैसे मनाये, अवश्य शेयर करियेगा l
ब्लॉग के विषय में आपके सुझावों का स्वागत है l
❤️❤️❤️
ReplyDeleteThanks
Delete👍👍❤️❤️
ReplyDeleteसही कहा सर आपने भाई बहन एक दूसरे से भी लड़ते हैं, और एक दूसरे के लिए भी लड़ते है। लड़े बिना चैन नहीं आता, और एक दूसरे के लिए कुछ किए बिना नींद नहीं आती। रही बात, त्योहारों की तो उनका इंतजार हमेशा रहता है।
ReplyDeleteThanks for reading.
Deleteसही कहा आपने
Bachapan or mummy papa ki yad aa gai bhai
ReplyDelete🙏
DeleteThanks
Bachapan or mummy papa ki yad aa gai bhai
ReplyDeleteRight. 🙏🙏
Deleteगौरव 100 में से 150 नंबर मेरी ओर से इतने बढीयाँ निबंधों के लिए तुम्हारे इस सिनियर भैया की तरफ से😉
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया, भाई
Delete👍👍👍❤❤❤
ReplyDeleteThanks
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