Monday, 2 June 2014

 माँ 
पुरुष तो करके एक,
सूक्ष्मदर्शी अंशदान,

पा लेता है,
पिता कहलाने का सम्मान|

पर माँ सींचती है,
महीनों बीज को,
अनंत पीड़ाएँ सहकर,
बनती है महान |

प्रतिक्षण आँचल की छांव में रखकर,
अपने दूध से नवजात को तृप्त कर |
रातों रात थपथपाती नींद तजकर,
और न जाने देती है कितने ही बलिदान,
.................तब बनती है महान |

पिता ले आये एक कमीज नयी,
पर माँ की लोरी का मोल नहीं |
घुटनो पर चलते लगे जब खुरचन,
पिता भाग झट से उठा लेता है,
पर आंसू पोंछती माँ का दिल,
बच्चे की हर सुबकी पर रोता है |
ममता भर ले बोली में,
निस्वार्थ का पहने परिधान
........तब बनती है महान |

पिता का दायित्व भौतिकता,
पर माँ स्नेह से पेट भर देती है |
पिता दुलार छुपा कर रखता है,
माँ जब चाहो वर्षा कर देती है |
बच्चा जब जब करवट लेता है,
माँ नींद से बैर कर लेती है |
निरुपम तपस्या है माँ होना,
इसका न कोई परिमाण,
.............तब बनती है महान |

1 comment:

Thanks for your invaluable perception.

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