Friday, 20 June 2014

नारी की वेदना
सृष्टि की आधी अभिव्यक्ति,
अस्तित्वों की जननी बना दिया|

भीख में टुकड़े सा मिला जो बचपन,
नारीत्व समझने में चला गया |

खिली, यौवन जब आया तो ,
औरों की नज़रों ने सता दिया |

अस्मिता बचाये रखने की चिंता ने,
कतरा कतरा मुझको गला दिया |

जीवन का उपहार देती हूँ मैं,
मुझ पर ही प्रश्न चिन्ह लगा दिया |

महीने के पांच दिन, गर्भ के नौ मॉस,
सम्पूर्ण जीवन सज़ा सा बना दिया |

हे इश्वर तू ही पक्षपाती है,
मनुष्य को दिलिंगी क्यों नहीं बना दिया ?

तूने तो पीड़ा दी ही थी,
पुरुष को क्यों नृशंष बना दिया ?

       गौरव शर्मा

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