अंतर्द्वंद.....
गले हुए एहसासों को सम्भालूँ कब तक ...
उंगली लगाते ही चिर जाते हैं ....
आँखों की वेदना को क्या समझेंगे वो ,
जो शब्दों का भी गलत अर्थ लगाते हैं ....
भीड़ में उनके कंधे पर हाथ रखके कितना भी मुस्कुरालूं मैं ...
रिश्तों में लगे पैबंद सबको नज़र आते हैं ......
गले हुए एहसासों को सम्भालूँ कब तक ...
उंगली लगाते ही चिर जाते हैं ....
आँखों की वेदना को क्या समझेंगे वो ,
जो शब्दों का भी गलत अर्थ लगाते हैं ....
भीड़ में उनके कंधे पर हाथ रखके कितना भी मुस्कुरालूं मैं ...
रिश्तों में लगे पैबंद सबको नज़र आते हैं ......
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Thanks for your invaluable perception.