Tuesday, 20 May 2014

चल ज़रा .........
सेवइयों से छोटे-छोटे रास्तों पे चलें नहीं .....
चल ज़रा जलेबी सी बना दे राहें नयी ....
उँगलियों में उँगलियों को फँसा कर चल ज़रा .....
आँखों में  आँखें डाले पुतलियों के
 नए रंग से नए सपने लिखले ज़रा .....
न दिन बुझे  ,  न रात खर्च हो ....
चल ..मेरे कंधे  पे रख के सर चल ज़रा ....
कदमो को सुस्ती की दवाई पिला कर चलें ...
चल ...शैतान मुस्कानों से एक दूजे को रिझाते चले ....
चाँद का लड्डू जो आधा खाकर छोड़  दिया  है  ज़मीं  ने .....
चल ,उसे ही मंज़िल बना कर वहां तक चलें  ....
चल ज़रा ....जलेबी सी बना के राहें ज़िन्दगी  की  चलें ....

No comments:

Post a Comment

Thanks for your invaluable perception.

Death & Mercy

          DEATH & MERCY                    ......... A poem by Akshika Sharma Two figures sat at the cliff, side by side Above a forest ...