'मुझे लड़की क्यों बनाया?'
आज फिर कोई भीड़ के बहाने,
मेरी छाती से अपनी छाती को,
रगड़ कर चला गया...
मेरी छाती से अपनी छाती को,
रगड़ कर चला गया...
कोई मेरी पीठ को सहला गया,
किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा,
और उँगलियों को मेरे शरीर में धंसा दिया...
किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा,
और उँगलियों को मेरे शरीर में धंसा दिया...
कोई जानबूझकर लड़खड़ाया और,
मेरे ऊपर गिर गया...
मेरे ऊपर गिर गया...
फिर आँखों से नीचता टपकाता,
मुँह से नकली बेचारगी वाली 'सॉरी' बुदबुदाता,
कुटिलता से मुस्काता आगे बढ़ गया...
मुँह से नकली बेचारगी वाली 'सॉरी' बुदबुदाता,
कुटिलता से मुस्काता आगे बढ़ गया...
उन्हें इस क्षणिक स्पर्श से
न जाने क्या हासिल हुआ होगा?
पर मैं देर तक सहमी रही...
चिड़चिड़ाती रही...
खुद को मैला मैला महसूस करती रही...
और पूछती रही भगवान से...
'मुझे लड़की क्यों बनाया?'
न जाने क्या हासिल हुआ होगा?
पर मैं देर तक सहमी रही...
चिड़चिड़ाती रही...
खुद को मैला मैला महसूस करती रही...
और पूछती रही भगवान से...
'मुझे लड़की क्यों बनाया?'
गौरव शर्मा
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Thanks for your invaluable perception.