उम्मीद
चुटकी में दबी रही उम्मीद,
शर्मिंदा शाम नज़रें चुरा के निकल गयी...
आँखों को सपनों की प्यास थी,
रात के दस्तक देते ही मचल गयी |
दिल की जेब में संभाल उम्मीद,
आँखों को करने दी मनमानी...
कल फिर उजियारा तो होगा,
ये कालिख होगी आसमानी |
अगले पहर करवट बदली जब,
पीठ में कुछ चुभ रहा था...
शायद दिल ने उम्मीद छोड़ दी थी,
या आँखों से सपना छूट गया था |
टटोला तो उम्मीद मिली,
सलवट में सिमटी करहाती थी...
सहेजा तो उंगली से लिपट गयी,
चुटकी में बंद होना चाहती थी |
पूछा तो बोली दिल खींचता है,
मैं जितनी हूँ उतनी ही रहने दो...
बड़ी और टूट गयी तो ज्यादा दुःख होगा,
मुझको चुटकी भर ही रहने दो...
मुझको चुटकी भर ही रहने दो....
गौरव शर्मा
अगले पहर करवट बदली जब,
ReplyDeleteपीठ में कुछ चुभ रहा था...
शायद दिल ने उम्मीद छोड़ दी थी,
या आँखों से सपना छूट गया था |
बहुत बढ़िया गौरव जी !!
Yogi Saraswat ji bahut aabhaar
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