Wednesday, 31 December 2014



तू पहली रात थी या आखिरी 



नहीं जानता तू
आखिरी रात थी बीते साल की,
या पहली रात थी नए साल की...
पर बड़ी बैचैन थी...

कितने जिस्म ओढे थी,
अपने ही वज़ूद के
प्रश्न चिन्ह लिए,
हवस की कीचड में सने हुए,
रूह तक नापाक नाखून गड़े हुए,
कितने जीवन थे मरे हुए,
ममता भी थी सिहरी हुयी,
मासूमियत यहाँ वहां बिखरी हुयी...

नहीं जानता मनाऊँ,
मातम या ख़ुशी
नए साल की...
तू आखिरी थी
या पहली थी?
रात तू बड़ी बेचैन थी....

उम्मीद पाल लूँ नयी,
जी उठूँ या मरा रहूँ,
नए सूरज से मांगूं क्या?
आदमी की आदमियत,
साफ़, पाक और नेक नियत,
डरा हुआ हूँ सोच रहा हूँ...
कैसे शुरुआत करूँ नए साल की,
तू आखिरी थी तो फिर मत आना...
इतने डरावने मंज़र मत लाना...
आज रात  तो नयी होकर आना...

                      गौरव शर्मा

2 comments:

  1. नहीं जानता मनाऊँ,
    मातम या ख़ुशी
    नए साल की...
    तू आखिरी थी
    या पहली थी?
    रात तू बड़ी बेचैन थी....
    बहुत बढ़िया

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    Replies
    1. बहुत शुक्रिया योगी सारस्वत साहिब

      Delete

Thanks for your invaluable perception.

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